Manthanam main Nari Vimarsh
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Abstract
मन्थनम्1 नामक इस कृति में परमानन्द शास्त्री ने स्त्री विमर्श की दृष्टि से महाकवि कालिदासकृत अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक की उस घटना को अपने काव्य का विषय बनाया है जो शकुन्तला के जन्म परिचय की मात्र जानकारी देती है। शकुन्तला मेनका अप्सरा एवं ऋषि विश्वामित्र की औरस पुत्री है। किन्तु यहाँ कवि ने उस अनछुए विषय पर मन्थन किया है कि देवराज इन्द्र के द्वारा स्वर्ग की अप्सरा मेनका को ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने के उद्देश्य से पृथ्वी पर भेजा गया। विवश होकर मेनका ने वैसा ही किया, ऋषि संग से एक पुत्री को उत्पन्न किया किन्तु विवशता के कारण उस पुत्री का त्याग करना पड़ा। आद्योपरान्त उस नियोग प्रक्रिया में मेनका के मन की प्रतिक्रिया एवं गान्धर्व विवाह के उपरान्त परित्यक्ता शकुन्तला की मनोस्थिति को डॉ॰ परमानन्द शास्त्री ने काव्य का रूप प्रदान किया, जिसमें नारी मनोविज्ञान, नारी के आत्म संघर्ष, उसकी परवशता और उसकी वेदना की अनुभूति को प्रस्तुत किया गया है।
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References
- मन्थनम्- परमानन्द शास्त्री, प्रथम संस्करणम् 2001 खीष्टाब्दे
- परमानन्दशास्त्रिरचनावलिः - डॉ॰ सत्यप्रकाश शर्मा एवं प्रो॰ परमेश्वरनारायण शास्त्री, राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानम्, नवदेहली, 2016, पृ0 12
- वही- पृ0 12-14
- मन्थनम्, परमानन्दशास्त्रिरचनावलिः - डॉ॰ सत्यप्रकाश शर्मा एवं प्रो॰ परमेश्वरनारायण शास्त्री, राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानम्, नवदेहली, 2016, पृ0 371, 1/33
- वही- पृ0 374, 1/53
- वही- पृ0 377, 2/11
- वही- पृ0 380, 2/31
- वही- पृ0 382, 2/43
- वही- पृ0 382, 2/45
- वही- पृ0 384, 3/6
- वही- पृ0 385, 3/8
- वही- पृ0 385, 3/12
- वही- पृ0 386, 3/14
- वही- पृ0 386, 3/20
- वही- पृ0 391, 3/55
- वही- पृ0 395, 4/11
- वही- पृ0 395, 4/13
- आगच्छ रे निर्दय! एहि! एहि, सोढुं समर्थास्म्यधिकं न तापम्।
- जातस्तनूजोऽद्य कियान् महाँस्ते, सम्भालयैनं स्वकरेण एत्य।।, वही- पृ0 400, 4/45
- वही- पृ0 412, 5/70
- मनुस्मृतिः - कुल्लूकभट्ट, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, 2014, पृ0 215 3/56