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Kirti Sandhelia

Abstract

यह देश अपने इतिहास के आरम्भ से ही महान आदर्श का कायल रहा है। हमारे यहॉ आदर्श मानव उसे ही माना गया है, जो आत्मा की सर्वोपरिता और भौतिक तत्वों पर आत्मतत्व की श्रेष्ठता प्रस्थापित करे। यह आदर्श पिछली चार या पांच सहस्राब्दियों से हमारे देश के धार्मिक दिगन्त पर हावी रहा है। मानव जाति के इन महापुरूषो में एक हैं- ऋषभदेव उन्हें जिन अर्थात विजेता कहा गया है। तप, संयम्, आत्मशुद्धि और विवके की अनवरत प्रक्रिया से उन्होंने अपना उत्थान करके दिव्य पुरूष का पद प्राप्त कर लिया। उनका उदाहरण हमें भी आत्मविजय के उस आदर्श का अनुसरण करने की प्रेरणा देता है।
हिन्दू ग्रन्थों में कहा गया है कि ऋषभदेव स्वयंभू की पांचवी पीढ़ी में हुए थे। और इस तरह वे प्रथम सतयुग के अन्त में हुए। अब तक अठ्ाईस सतयुग बीत चुके है। अससे भी उनके समय की दीर्घता का अनुुमान लगाया जा सकता है, अतः जैनधर्म का आरम्ीा काल बहुत प्राचीन सिद्ध होता है।
यहां बाल गंगाधर तिलक के भी जैनधर्म के बारे में विचार द्रष्टव्य है- भारत में यह धर्म बौद्ध धर्म से पहले मौजूद था। प्राचीन काल में असंख्य पशुओं की बलि दी जाती थी। इस बलि-प्रथा को समाप्त कराने का श्रेय जैनधर्म को दे।


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This country has been convinced of the great ideal since the beginning of its history. Here the ideal human being is considered to be the one who establishes the supremacy of the soul and the superiority of the self over the material elements. This ideal has dominated the religious giants of our country for the last four or five millennia. One of these great men of mankind is - Rishabhdev, he has been called Jin, that is, the conqueror. By the continuous process of austerity, restraint, self-purification and wisdom, he uplifted himself and attained the status of a divine person. His example also inspires us to follow that ideal of self-conquest.It is said in Hindu texts that Rishabhdev was born in the fifth generation of Swayambhu. And thus they happened at the end of the first Satya Yuga. Twenty-eight Satyugas have passed so far The elongation of their time can also be estimated from this, so the Arma period of Jainism proves to be very ancient.Here Bal Gangadhar Tilak's view about Jainism is also seen - this religion existed in India before Buddhism. In ancient times innumerable animals were sacrificed. The credit for ending this sacrificial system goes to Jainism.

Article Details

CITATION
DOI: 10.54903/haridra.v3i09.10728
Published: 2022-08-17

How to Cite
Sandhelia, K. . (2022). जैनधर्म का उद्भव और उसकी प्राचीनता / Origin and antiquity of Jainism. Haridra Journal, 3(8), 13–17. https://doi.org/10.54903/haridra.v3i09.10728

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