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Manisha Dixit

Abstract

इतिहास हमारा बीता हुआ कल था। उसमें कतिपय ऐसे अन्थकारमय पन्ने हैं जिनके खोलने से आत्मग्लानि होती है तो कतिपय ऐसे भी पृष्ठ हैं जिनके अवलोकन से मन गौरवान्वित हो उठता है। काले पन्नों से हम यह सीखते हैं कि हम दुबारा उन गलतियों को न दोहरायें जिससे हमारा भविष्य भी कालिमामय भूतकाल बने। बल्कि हम अपने उस गौरवशाली इतिहास को भी जाने जिसमें देवत्व ही देवत्व के दर्शन होते हैं। स्वयं मानवता की राह में चलते हुए गर्व से जीने तथा औरों को भी जीने देने का पवित्र उद्देश्य समाहित है। भारत वर्ष में अनेकों आक्रान्ताओं ने अपने अपनी हठधर्मिता की हदें पार कर दीं। जिससे हमारा सत्य इतिहास कुछ काल के लिए तिरोहित हो गया था किन्तु आज जब उन पन्नों को पलटा जा रहा है तो सत्य कुछ भिन्न ही दिखाई देता है। यदि समय रहते अपने उस गौरवशाली इतिहास का अधिकाधिक पठन व मनन किया जायेगा तो लिश्चय हर राष्ट्र के विकास में एक नया सबेरा आ सकेगा। आवश्यकता इस बात की है कि हमें सत्य इतिहास की जानकारी होनी चाहिए।


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History was our past. There are some such dark pages in it, whose opening leads to self-incrimination, then there are some such pages whose observation makes the mind proud. From the black pages, we learn that we should not repeat those mistakes again, so that our future also becomes a dark past. Rather, we should also know our glorious history in which divinity is the vision of divinity. The sacred purpose of living with pride and allowing others to live while walking in the path of humanity itself is contained. In India, many invaders have crossed the limits of their own dogma. Due to which our true history had disappeared for some time, but today when those pages are being turned, the truth looks a bit different. If more and more of that glorious history is read and contemplated in time, then surely a new dawn will come in the development of every nation. The need is that we should know the true history.

Article Details

CITATION
DOI: 10.54903/haridra.v3i09.10726
Published: 2022-08-17

How to Cite
Dixit, M. . (2022). राष्ट्र के पुनरुत्थान में भारतीय ऐतिहासिक साहित्य का योगदान / Contribution of Indian Historical Literature in the Resurgence of the Nation. Haridra Journal, 3(8), 03–07. https://doi.org/10.54903/haridra.v3i09.10726

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