Pramukh Upnishadon Main Nari –Ek Vimarsh
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Abstract
उपनिशद् हिन्दू संस्कृति की अमूल्य निधि और कहीं भी किसी भी धर्म या भाशा में न मिलने वाली अतुलनीय अध्यात्म सम्पत्ति है। भारतीय विचारधारा का सर्वोपरि स्वरूप जिसने इसकी समग्र संस्कृति को ओतप्रोत कर रखा है और जिसने इसके सब चिन्तकों को एक विषेश प्रकार का ढाँचा प्रदान किया है, इसकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति है। आध्यात्मिक अनुभव भारत के सम्पन्न सांस्कृतिक इतिहास की आधारभित्ति है।
उपनिशद् ज्ञान के भण्डार हैं और इन्हीं से सारे दर्षन, सब षास्त्र, सब तर्क, अखिल युक्तियाँ, समस्त तन्त्र, सारे पुराण, सम्पूर्ण पदार्थ, विज्ञान और निखिल विद्याएँ निकलकर मानव-जाति को आनन्द और षान्ति की विमल मन्दाकिनी में बहा रही है। समस्त संसार में ऐसा कोई स्वाध्याय नहीं है, जो उपनिशदों के समान उपयोगी और उन्नति की ओर ले जाने वाला हो। वे उच्चतम बुद्धि की उपज है। आगे या पीछे एक दिन ऐसा होना ही है कि यही जनता का धर्म होगा। उपनिशदों का प्रत्येक वचन वह अमर और प्रतापमयी वाणी है, जिसे पढ़कर और जिसके अनुसार आचरण कर कितने ही विद्वान सिद्ध बन गये। कितने ही पुरुश योगी हो गये, कितने ही जीवन्मुक्त और कितने ही ब्रह्मलीन हो गये।