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Dr Kamini Ojha

Abstract

हिन्दी साहित्य के इतिहास में द्विवेदी युग के पश्चात् का जो युग आया वह छायावाद के नाम से जाना जाता है । इस युग के प्रमुख स्तम्भ कवि जिनमें निराला, महादेवी वर्मा, प्रसाद, पंत रहे हैं । जिन्होंने भाषा, भाव, छंद, अलंकार शैली इन सभी तत्त्वों ने एक नवीन अभिव्यक्ति के साथ प्रस्तुत हुए है। जिसे ’छायावाद’ अथवा ’छायावादी कवित’ का नाम दिया गया । द्विवेदी युग के कवि उपदेशात्मक व नैतिकता की अधिकता होने के कारण उसमें निरसता का भाव हो गया था । हिन्दी साहित्य के इतिहास में आधुनिक कविताएँ एक ऐसी रचना है, जिसका संबंध हृदय से तथा भार-जगत से है । हृदय अनुभव करने की वस्तु है। भाव-जगत लोक के अनुभव करने की वस्तु है । लेखमाला के प्रथम निबंध ’कवि स्वातंत्र्य’ में मुकुटधर जी ने कहा -’’अंग्रेजी या किसी पाश्चात्य साहित्य अथवा बंग साहित्य की वर्तमान स्थिति की कुछ भी जानकारी रखने वाले तो सुनते ही समझ जाएँगे कि यह शब्द ’मिस्टिसिज्म’ के लिए आया है।’’


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The era that came after the Diwedi era in the history of Hindi literature is known as Chhayavad. The main pillar poets of this era in which Nirala, Mahadevi Verma, Prasad, Pant have been. Who has presented language, expressions, verses, style of ornamentation, all these elements with a new expression. Which was given the name of 'Chayavaad' or 'Chhayavadi Poetry'. The poet of the Dwivedi era had a sense of absurdity due to the abundance of preaching and morality. Modern poetry is such a composition in the history of Hindi literature, which is related to the heart and the world. The heart is an object of experience. The world of emotion is the object of the experience of the people. In the first essay 'Kavi Swatantra' of Lekhmala, Mukutdhar ji said - "Those who have any knowledge of the present condition of English or any western literature or Bengali literature will understand that this word has come for 'Mysticism'. 

Article Details

CITATION
DOI: 10.54903/haridra.v3i09.11385
Published: 2022-07-04

How to Cite
Ojha, D. K. (2022). छायावाद और पंत के काव्य में प्रकृति-चित्रण / Mysticism and nature-illustration in Pant’s poetry. Haridra Journal, 3(09), 16–24. https://doi.org/10.54903/haridra.v3i09.11385
Author Biography

Dr Kamini Ojha, Jai Narayan Vyas university , Jodhpur - Rajasthan , India.

Asst Prof  (Dept of Hindi)


References

  1. छायावाद-नामवर सिंह, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2016, पृ.11
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  3. वही, पृ. 6
  4. वही, पृ. 7
  5. वही, पृ. 7
  6. वही, पृ. 8
  7. वही, पृ. 8
  8. वही, पृ. 8
  9. वही, पृ. 11
  10. वही, पृ. 11
  11. वही, पृ. 12
  12. वही, पृ. 13
  13. वही, पृ. 13
  14. आधुनिक साहित्य की प्रवत्तियाँ - नामवर सिंह, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, संस्करण 2013, पृ. 19
  15. छायावाद और रहस्यवाद-श्री गंगाप्रसाद पाण्डेय, प्रकाशक रामनारायणलाल इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 1941, पृ. 27
  16. रश्मिबन्ध - सुमित्रानन्दन पंत, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण 1958, पृ. 65
  17. वही, पृ. 42
  18. वही, पृ. 65
  19. वही, पृ. 69
  20. वही, पृ. 47
  21. वही, पृ. 87
  22. साहित्यिक निबन्ध - सं. डॉ. शान्ति स्वरूप गुप्त, अशोक प्रकाशन दिल्ली, नवम् सरंस्करण 1988, पृ. 586
  23. रश्मिबन्ध - सुमिगानन्दन पन्त, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 1958, पृ. 66
  24. छायावाद और रहस्यवाद - श्री गंगाप्रसाद पाण्डेय, प्रकाशन राम नारायण लाल इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 1941, पृ. 37
  25. रश्मिबन्ध - सुमित्रानन्दन पंत, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 1958, पृ. 34
  26. चिन्तामणि - भाग 1 - रामचन्द्र शुक्ल, पृ. 219-220
  27. छायावाद विश्लेषण और मूल्यांकन - लेखक श्री दीनानाथ ’शरण’, प्रकाशन नवयुग ग्रंथालय, प्रथम संस्करण, 1958, पृ. 201
  28. रश्मिबन्ध - सुमित्रानन्दन पंथ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्कारण 1958, पृ. 65
  29. वही, पृ. 67
  30. गाँधी अभिनन्दन - ग्रन्थः सं. सोहनलाल द्विवेदी, उत्तर प्रदेश गाँधी शताब्दी समिति, संस्करणः 2 अक्टूबर 1969, पृ. 58
  31. रश्मिबन्ध - सुमित्रानन्दन पंत, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 1958, पृ. 56-57
  32. छायावाद युग - शम्भूनाथ सिंह, प्रकाशक सरस्वती मंदिर बनारस, प्रथम संस्करण 1952, पृ. 97
  33. छायावाद विश्लेषण और मूल्यांकन - लेखक श्री दीनानाथ ’शरण’ प्रकाशन नवयुग गं्रथालय इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 1958, पृ. 201