कविवर भूधरदास विरचित बारह-भावनाओं का मनोरम चित्रण / Captivating illustration of twelve-feelings composed by poet Bhudhardas
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Abstract
1. -यद्यपि द्वादश अनुप्रेक्षा का विषय जैनदर्शन की मौलिक देन है, तथापि इस विषय की लोकप्रियता न केवल जैनों में, अपितु अन्य धर्मो के विद्वानों और कवियों में भी बहुत हुई है। यह विषय ही इतना हृदयहारी है कि लोगों का चित्त आकर्षित किये बिना रहता नहीं है। न केवल इस विषय से अन्य धर्मो के कवि आकर्षित हुए, अपितु उन्होंने इस पर अनेक ‘बारह भावनाओं’ की रचना भी हैं। इसप्रकार देखा जाये तो आज हमारे समक्ष एक सौ से अधिक बारह भावनाएं उपलब्ध हैं।
इस विषय की महत्ता इसलिए भी है कि ये भावनायें संसार, शरीर और भोगों में उलझे हुए संसारी लोगों के मानस में वैराग्य भावना जगाकर उन्हें सजग करता है कि ये सारे संयोग जीवन के समाप्त होने तक ही हैं, तत्पश्चात् सब बदल जाने वाले हैं, अतः जो भी हित के उपायभूत तत्व हैं, उनकी आराधना करने का यह उत्तम समय व्यर्थ मत जाने दो। यह मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता है।
द्वादश भावनाओं के स्वतंत्र ग्रन्थ भी श्रेष्ठ आचार्यों द्वारा रचे गये हैं, जिनमें कार्तिकेयाचार्य का कार्तिकेयानुप्रेक्षा और आचार्य कुन्द कुन्द का बारस अणुवेक्खा प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त कुछ ग्रन्थ तो इस प्रकार के हैं, कि उनके नाम और मूल विषयवस्तु के अतिरिक्त उसमें अवान्तर प्रसंग के रूप में बारह भावनाओं का उल्लेख हुआ है, जैसे- आचार्य उमास्वामी के तत्वार्थसूत्र में और मुनीन्द्र रविचन्द्र विरचित ‘आराधना समुच्चय’ और श्रीगुरुदास विरचित ‘योगसारसंग्रह’ में भी अवान्तर प्रसंग के रूप में बारह भावनाओं का निरूपण किया गया है।
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- Although the subject of twelfth observation is a fundamental contribution of Jain philosophy, however, the popularity of this subject has been immense not only among Jains, but also among scholars and poets of other religions. This subject itself is so heart-wrenching that the mind of the people cannot remain without being attracted. Not only did poets of other religions get attracted to this subject, but they have also composed many 'Twelve Feelings' on it. In this way, there are more than one hundred and twelve emotions available to us today.
The importance of this subject is also because these feelings awaken detachment in the mind of worldly people entangled in world, body and pleasures and alert them that all these coincidences are only till the end of life, after that everything is going to change, so Do not let this good time go in vain for worshiping whatever are the essential elements of interest. This human birth does not happen again and again.
Independent texts of the twelfth feelings have also been composed by the best masters, in which Kartikeyaanupreksha of Kartikeya and Baras Anuvekkha of Acharya Kunda Kunda are prominent. Apart from this, some texts are such that, in addition to their names and original content, twelve emotions have been mentioned in the form of incarnations, such as in the Tattvarthasutra of Acharya Umaswami and Munindra Ravichandra composed 'Aradhana Samuchaya' and Sri Gurudas composed ' In the 'Yogasarsangraha' also twelve emotions have been represented in the form of avantar context.
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References
- कवि भूधरदास, बारह भावना, बारह भावना शतक, जयपुर
- आचार्य उमास्वामी, तत्वार्थसूत्र, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, जयपुर
- स्वामी कार्तिकेय, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास
- आचार्य कुन्दकुन्द, वारसाणुवेक्खा, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास
- श्रीरविचन्द्र मुनीन्द्र, आराधना समुच्चय, सम्पादक, डॉ0 शुद्धात्मप्रकाश जैन, सोमैया प्रकाशन, मुम्बई
- श्री गुरुदास, योगसारसंग्रह, सम्पादक, डॉ0 शुद्धात्मप्रकाश जैन, सोमैया प्रकाशन, मुम्बई
- बारह भावनाः एक अनुशीलन, डॉ0 हुकमचन्द भारिल्ल, पं0 टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर