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Mahesh Kumar Alendra

Abstract

प्रकृति मानव की प्रारंभिक सहचरी रही हैं, जब से मानव ने इस भूपटल में जन्म लिया है, तभी से वह प्रकृति के साहचर्य में आया है। वह सूर्य चंद्रादि से प्रकाशित हुआ है, वृक्षों ने उसे छाया प्रदान कि है, भूमि ने उसे अन्न दिया है, झरनों ने उसे शीतल जल प्रदान किया है एवं समुद्र ने उसे रत्न दिए है, अतः मानव एवं प्रकृति का निरंतर संयोग रहा है। इसी सुन्दर प्रकृति ने उसे यदाकदा झंझावत, उत्पल-वर्षा व तिमिर से भयभीत एवं अस्थिर किया और इन सबके कारण उसने परमेश्वर का सहारा लेकर भय व कम्पन से छुटकारा पाने का प्रयास किया है, यही कारण है कि जगत के आदि ग्रंथो से ही हमें इंद्र, सूर्य, वरुण, चन्द्र, वायु, एवं पृथ्वी विषयक, गुणगान मिलते है। ऋग्वेद के ही एक मंत्र में इंद्र द्वारा पर्वतो को अचल करने, कम्पित पृथ्वी को स्थिर करने व गगन मण्डल को सँभालने का सुन्दर वर्णन मिलता है

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CITATION
DOI: 10.54903/haridra.v2i07.7767
Published: 2021-12-27

How to Cite
Alendra, M. K. (2021). Meghdoot Main Prakriti Chitran. Haridra Journal, 2(7), 27–33. https://doi.org/10.54903/haridra.v2i07.7767

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  10. मेघदूत- 14 -चाँदनी
  11. मेघदूत- 92 -चन्द्रमा
  12. मेघदूत- 19 -वायु
  13. मेघदूत- 12 -मेघ
  14. मेघदूत- 3 -बादल
  15. मेघदूत- 54 -बिजली
  16. मेघदूत- 38 -वर्षा
  17. मेघदूत- 204 -रात्रि
  18. मेघदूत- 5 - ऋतु